लालीगुरांश (सिर्जना भण्डारी)
प्यारसे देखनेकी तरस बढ्तीजाती है ।
जितना सुनलुं तुम्हारा मधूर वाणी
नजदिकीसे सुन्नेकी अकांक्षा बढ्तीजाती है ।
जितना महसुस करलुं तुम्हारा छुवा
पास होनेकी तमन्ना बढ्तीजाती है ।
जितना पाश आतेहो तुम बारबार
तुम्हे पानेकी प्यास बढ्तीजाती है ।
जितना सुनु तुम्हारी दिलकी धड्कन
उनमे छिपजानेकी ख्वाइस बढ्तीजाती है ।
जितना गुनगुनाउं तुम्हे प्रेमकी रागमे
प्रीतमे डुबजानेकी खयाल बढ्तीजाती है ।
जितना छुलुं नजरसे तुम्हारी नजरोंको
उनमे खोजानेकी कामना बढ्तीजाती है ।
जितना रंग बिखरताहै तुम्हारी पल्के
दिदार करनेकी दिवान्गी बढ्तीजाती है ।
जितना समय देतेहो तुम मेरेलिए
उनपलमे रम्नेकी ख्वाइस बढ्तीजाती है ।
जितना सुगन्ध छरतीहै तुम्हारी अदाएं
गौरसे निहार्नेकी तमन्ना बढ्तीजाती है ।
जितना सुगन्ध छरतीहै तुम्हारी अदाएं
गौरसे निहार्नेकी तमन्ना बढ्तीजाती है ।।
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