लालीगुरांश (सिर्जना भण्डारी)
तवभी आपके नशेमे थे
अव और ज्यादा चढ्गयी
झुमरहे है आपके नशेमे
अमृतसा प्रेमका ए नशा
उतरताही नहीं हमारे हृदयसे
तव नशा हल्कासा चढाथा
अव और गहरा होगया ।
आप कभि थक्तेही नहीं
प्रेमके अमृत वर्षाते रहेतेहै 
हमे नशा पिलातेरहेते है
हम नशेमे झुमतेरहेते है
अव होचुकीहै प्राण समान
उस चिजकी नशातो छुटगई
हमे प्रेमका नशा भागया ।
हमे क्या खवर थी
आपसे यीत्नी मुहब्वत होजाएगी
दो हृदय एक होआजाएगी
नैनोमे प्रेमकी मधुशाला छलकजाएगी
आपकी तरफ इसतरह खिचलाएगी
हमेतो आपके नजर भागएथे
अवतो आपकेही होकर रहगए ।
आप नैनोके रास्ते आएथे
हमारे हृदयके अन्दरतक बसगए
पहले तालाव नजर आएथे
हृदयमे गहरा सागर खोदगए
हमदोनो उस सागरमे डुबगए
इश्वरके उस शान्तिधाममे खोगए
प्रभुके रंगीन वातसल्यमे रमगए ।
हमेतो आपके नजर भागएथे
अवतो आपकेही  होकर रहगए
इश्वरके उस शान्तिधाममे खोगए
प्रभुके रंगीन वातसल्यमे रमगए ।।
No comments:
Post a Comment