लालीगुरांश (सिर्जना भण्डारी)
अनुभव बतातीहै, सायद
सभी प्रेमीयोंके हिस्सेमे
मिल्ना लिखा नहींहोता 
एकान्तमे दोनो बैठकर
सुखद संवाद नहींहोता
कुछ प्रेम कहानी
नैनोसे शुरु होकर
प्रेमकी सागरमे डुबजातेहै
एकदुसरेपे समर्पित होजातेहै
आँखोके प्यास बढजातेहै
देखनेकी अविप्सा जागतीहै
पर मुस्किल हालातोंमे
पिर पराइ नहींजानतेहै
प्रेमी दबावमे पढजातेहै
चाहत हृदयमे दबजातेहै
अश्रु बनकर बहेजातेहै
दुरी हकिकत बनजातेहै
सारे सपनें बिखरजातेहै
यादोंमे प्रेमी खोजातेहै
कहानी अधूरी रहजातीहै
एकबार देखनेकी अभिलासा
एकबार मिल्नेकी आशा
एकबार छुनेकी तृष्णा
एकबार आलिंगनकी तमन्ना
एकसाथ होनेकी लालसा
एकसाथ रोनेकी इच्छा
एकसाथ हंस्नेकी मनसा
एकसाथ जीनेकी कामना
इश्वरपर समर्पित होजातीहै
मनकी सभी कल्पनाएं
तस्वीरमे सिमटकर रहजातीहै!
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