Saturday, 23 April 2022

खयालात मे डुवीरहती हुँ

 

                          लालीगुरांश  (सन्त सिर्जना)  

मै तो हरपल तुम्हारी

खयालात मे डुवीरहती हुँ

क्या तुम्हे भी मै याद आती हुँ

इतना विरहमे डुवादिया 

की, आँशु आँशु होरही हुँ

कभि कभि तो छोटी सि 

हंसी भिज्वादेते मेरे नाम

हंसी ना सही तो

कुछ गुन्जादते कानो पर

इतना कठोर दिल

कैसे हो गए तुम पिया

पहले पहले अन्जाने मे 

मैने खुव रुलाइ तुमको

अव तुम मुझे रुलारहे हो

क्या मुझसे बदला लेरहे हो 

अव ए सब सहने की ताकत

नहीं है मुझमे पिया

अव मेरे हृदयमा समाजाव

और इन्तजार नही होती ।

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