लालीगुरांश (सिर्जना भण्डारी)
लबोपे तुम्हारी प्यास
हृदयपे तुम्हारी एहसास
आँखोपे तुम्हारी आश
कभि दुर होताहीनहीं । 
कहुँ क्या तुमसे
बोलुँ क्या तुमसे
मन समझ्ताहै मुस्किलोंको
दिल पागलपागल फिरताहै ।
मनके हरकोनेमे तुम
दिलके हरधड्कनमे तुम
प्राणोके हरश्वासोमे तुम
हरजगाह सिर्फ तुमहितुम ।
तुम्हारी यादें सतातीहै
तुम्हारी ख्वाब रुलनतीहै
तुम्हारी एहसास रुझातीहै
तुम्हारी प्यास रुहानीहै ।
पानेका कोही रास्तानहीं
खोनेका विलकुल हिम्मतनहीं
कहाँ ढुन्डु तुम्हे
कैसे जीउं तुममे ।
देखनेको तरसतीहै आँखे
छुनेको तडपताहै दिल 
आँखोसे आँशु सुख्तेनहीं
दिलसे तडप छुट्तेनहीं ।
बोलनहीं सक्ते हम
मिलनहीं सक्ते हम
आपसमे दुर होकर
रहेभी नहींसक्ते हम ।
आपसमे दुर होकर
रहेभी नहींसक्ते हम । ।
No comments:
Post a Comment