Thursday, 13 February 2025

लबोपे प्यास हृदयपे एहसास

               लालीगुरांश  (सिर्जना भण्डारी)

लबोपे तुम्हारी प्यास
हृदयपे तुम्हारी एहसास
आँखोपे तुम्हारी आश
कभि दुर होताहीनहीं । 

कहुँ क्या तुमसे
बोलुँ क्या तुमसे
मन समझ्ताहै मुस्किलोंको
दिल पागलपागल फिरताहै ।

मनके हरकोनेमे तुम
दिलके हरधड्कनमे तुम
प्राणोके हरश्वासोमे तुम
हरजगाह सिर्फ तुमहितुम ।

तुम्हारी यादें सतातीहै
तुम्हारी ख्वाब रुलनतीहै
तुम्हारी एहसास रुझातीहै
तुम्हारी प्यास रुहानीहै ।

पानेका कोही रास्तानहीं
खोनेका विलकुल हिम्मतनहीं
कहाँ ढुन्डु तुम्हे
कैसे जीउं तुममे ।

देखनेको तरसतीहै आँखे
छुनेको तडपताहै दिल 
आँखोसे आँशु सुख्तेनहीं
दिलसे तडप छुट्तेनहीं ।

बोलनहीं सक्ते हम
मिलनहीं सक्ते हम
आपसमे दुर होकर
रहेभी नहींसक्ते हम ।

आपसमे दुर होकर
रहेभी नहींसक्ते हम । ।

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