Sunday, 7 July 2024

मै तुझेही ढुंढतीहुँ !

                  लालीगुरांश  (सिर्जना भण्डारी) 


कभि सुबहकी किरणोंमें

कभि वादलको छावमें
मै तुझेही ढुंढतीहुँ !

कभि सामके झिलमिलमें
कभि रातके सन्नटामें
मै तुझेही ढुंढतीहुँ !

कभि प्रकृतिके हरयालीमें
कभि पतझडके मौसमोमें
मै तुझेही ढुंढतीहुँ !

कभि दुनियाँके भिडमें
कभि अपनी खामोसीमें
मै तुझेही ढुंढतीहुँ !

कभि सहेलीयोंके  छेडछाडमें
कभि अपनी लज्जामें
मै तुझेही ढुंढतीहुँ !

कभि वाहरके सुखमें
कभि अन्दरके  आनन्दमें
मै तुझेही ढुंढतीहुँ !

कभि यादोंके नदिमें
कभि कल्पनाओंके झिलमें
मै तुझेही ढुंढतीहुँ !

कभि अपने प्यारमें
कभि तुम्हारी प्यासमें
मै तुझेही ढुंढतीहुँ !

हाँ, हर जगह
हर उन पलोंमें
मै तुझेही ढुंढतीहुँ !
वस, तुझेही ढुढतीहूँ !!

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