लालीगुरांश (सिर्जना भण्डारी)
जिस रिस्तेकी कोही नामही नहीं
उस रिस्तेसे इत्नी लगाव क्युं
जिस रिस्तेकी कोही पहिचानही नहीं
उस रिस्तेसे इत्नी सुकुन क्युं !?
जिस रिस्तेमें जाना मुम्किनही नहीं
उस रिस्तेसे इत्नी सपने क्युं
जिस रिस्तेको दुनिया गाली देतीहै
उस रिस्तेसे प्रेमके अमृत क्युं !?
जो इन्सानसे कभि पहिचानही नहीं
उसकी छवि हरपल हृदयमे क्युं
जो इन्सान कभि आएगाही नहीं
जीन्दगीमे उसकी इत्नी इन्तजारी क्युं !?
अन्जान डरसे तन दुर भागतीरही
खोनेके डरसे मन पाश आतीरही
सुकुनके पलकी आश हृदय सजातीरही
बाधाएं बढ्तीगई आँखे नम होतीरही !!
तुम्हे चाहनेसे हृदयको सुकुन मिल्ताहै
तुम्हे खोनेके डरसे बेकरारी बढ्तीहै
तुम्हे पाना नसिबमें लिखाही नहीं
तुम्हे खोना मेरेलिए सम्भवही नहीं !!
मै खुदसे सवाल करकरके थकगइ,
जिस रिस्तेकी कोही नामही नहीं
उस रिस्तेसे इत्नी लगाव क्युं
जिस रिस्तेकी कोही पहिचानही नहीं
उस रिस्तेसे इत्नी सुकुन क्युं !?
जिस रिस्तेमें जाना मुम्किनही नहीं
उस रिस्तेसे इत्नी सपने क्युं
जिस रिस्तेको दुनिया गाली देतीहै
उस रिस्तेसे प्रेमके अमृत क्युं !?
जिस रिस्तेको दुनिया गाली देतीहै
उस रिस्तेसे प्रेमके अमृत क्युं !?
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