लालीगुरांश (सिर्जना भण्डारी)
तेरी मेरी होठ बोल्ती नहीं
लेकिन अदाएं कुछ कहेती है
तेरी मेरी मुलाकात हुइ नहीं
आँखे चाहतकी राज खोल्ती है
तेरी मेरी बातचित हुई नहीं
शुन्यता आपसमे वात करती है
तेरी मेरी पहिचान हुइ नहीं 
हृदयमे अपनापन हरपल धड़कता  है
हम एकदुस्रेको नजदिकसे जानते नहीं
हृदयमे प्रेमका अमृत वरषता है
हम नजदिक आ नहीं सकते
लेकिन देखनेको आखें तरसती है
प्यार छुपानेसे नहीं छुप सक्ता
दुर भाग्ते-भाग्ते थक गए हम
तव सत्यको जान लिया हमने
प्यार तो खुद खुदा है
खुदासे दुर कैसे रहेसक्ते है !